रायपुर/जशपुरनगर । विशेष रिपोर्ट
प्रदेश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला करने की कोशिश अब सीधे जिला जशपुरनगर जनसम्पर्क अधिकारी के दफ्तर से की जा रही है। सहायक संचालक जनसम्पर्क कार्यालय, नूतन सिदार ने पत्रकारों को सीधे धमकी भरा कानूनी नोटिस भेजकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि –
👉 क्या नूतन सिदार ने यह नोटिस भेजने से पहले शासन/प्रशासन से अनुमति ली थी?
👉 अगर अनुमति नहीं ली गई तो क्या यह कदम सेवा आचरण नियमों का खुला उल्लंघन नहीं है?
सरकारी सेवा नियम स्पष्ट कहते हैं कि कोई भी शासकीय कर्मचारी यदि अपने पदनाम का इस्तेमाल करते हुए किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही करता है तो उसे उच्च अधिकारी से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है। लेकिन यहाँ तो अधिकारी स्वयं ही पत्रकारों को डराने-धमकाने में जुट गईं।
पत्रकार संगठनों ने इसे सीधा हमला बताया है। उनका कहना है कि –
“सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून की बात करती है, लेकिन यहां सरकारी अधिकारी ही पत्रकारों को धमका रहे हैं। क्या यही है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता? क्या यही है लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका?”
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। पत्रकारों पर आरोप मढ़कर, ब्लैकमेलिंग का ठप्पा लगाकर और मानहानि का मुकदमा ठोंककर प्रशासन के कुछ लोग सच को दबाना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सच को दबाया जा सकता है? क्या पत्रकारों की आवाज़ को कुचला जा सकता है?
अब पूरे प्रदेश में यह चर्चा है कि –
👉 क्या जशपुरनगर के कलेक्टर और जनसम्पर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मामले में संज्ञान लेकर कार्रवाई करेंगे?
👉 या फिर यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा और अधिकारी खुलेआम नियमों को तोड़ते रहेंगे?
यह मामला केवल एक नोटिस का नहीं है, यह मामला लोकतंत्र में पत्रकारिता की आज़ादी बनाम अधिकारीशाही की दबंगई का है। यदि बिना अनुमति लिए नोटिस भेजने पर कोई कार्रवाई नहीं होती तो यह सीधा संदेश होगा कि प्रशासन स्वयं अपने अधिकारियों को पत्रकारों पर अत्याचार करने की खुली छूट दे रहा है।
अब जनता और पत्रकार समाज दोनों प्रशासन से यही पूछ रहे हैं “क्या जशपुर का प्रशासन इतना कमजोर है कि एक अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करके पत्रकारों को खुलेआम धमकाए और फिर भी बच निकले?”
अब जानते हैं - Central Civil Services (Conduct) Rules, 1964 के बारे में…
(हिंदी में: केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964)
यह 1964 में अधिसूचित (notified) हुआ था और 1 जनवरी 1965 से लागू हुआ, इसलिए इसे अक्सर 1965 का आचरण नियम भी कहा जाता है।
उद्देश्य
इसका मुख्य उद्देश्य है –
भारत सरकार के सभी सिविल सेवकों (Central Govt. employees) के लिए नैतिक आचरण (code of conduct) तय करना।
ताकि उनके कामकाज, सार्वजनिक जीवन, सामाजिक व्यवहार और वित्तीय लेन-देन में ईमानदारी, निष्पक्षता और जवाबदेही बनी रहे।
लागू क्षेत्र
यह नियम भारत सरकार के सभी केंद्रीय सिविल सेवकों पर लागू होता है (जैसे IAS, IPS, IFS, Railway, Defence Civilians, PSU/Autonomous bodies के कई कर्मचारी)।
राज्य सरकारों ने भी इसी तर्ज़ पर अपने-अपने State Civil Services Conduct Rules बनाए हैं।
मुख्य प्रावधान (Rules at a glance)
1. सामान्य आचरण (General Conduct)
सरकारी सेवक को ईमानदारी, निष्पक्षता और उच्च नैतिक मानकों का पालन करना होगा।
उसे ऐसा कोई काम या बयान नहीं देना चाहिए जिससे सरकार की बदनामी हो।
2. राजनीतिक गतिविधियाँ (Political Activities)
किसी भी राजनीतिक दल की सदस्यता या सक्रिय भागीदारी वर्जित है।
राजनीतिक भाषण, रैली, चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो सकते।
3. भ्रष्टाचार और रिश्वत (Corruption & Bribery)
किसी भी रूप में रिश्वत, गिफ्ट, अतिथि-सत्कार, फ्री यात्रा लेना प्रतिबंधित है (कुछ छोटी व्यक्तिगत उपहारों को छोड़कर जिनकी रिपोर्ट देनी होती है)।
4. संपत्ति और निवेश (Property & Investment)
सरकारी सेवक को अपनी चल-अचल संपत्ति (movable/immovable property) की जानकारी देनी होगी।
बड़ी खरीद-फरोख्त (जैसे ज़मीन, मकान, गाड़ी) बिना पूर्व अनुमति/सूचना के नहीं कर सकते।
स्टॉक-शेयर मार्केट में अटकलें (speculation) नहीं कर सकते।
5. दोहरी नौकरी (Private Trade or Employment)
सरकारी सेवक बिना अनुमति के किसी भी निजी व्यापार, पेशा या नौकरी में नहीं लग सकता।
6. प्रेस और मीडिया से जुड़ाव (Press & Media)
बिना अनुमति के पुस्तक/लेख/संपादकीय/पत्रकारीय कार्य नहीं कर सकता (यदि वह सरकारी कार्य से संबंधित है)।
सोशल मीडिया पर भी नियम लागू होते हैं।
7. प्रदर्शन / यूनियन (Demonstrations & Strikes)
सरकारी सेवक हड़ताल, धरना, प्रदर्शन, हिंसक आंदोलन में शामिल नहीं हो सकता।
8. सार्वजनिक आलोचना (Public Criticism)
सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों या वरिष्ठ अधिकारियों की सार्वजनिक आलोचना नहीं कर सकता।
9. रिश्वतखोरी व ईमानदारी (Integrity)
हमेशा उच्चतम ईमानदारी (absolute integrity) और निष्पक्षता बनाए रखनी होगी।
10. महिलाओं और कमजोर वर्गों के प्रति आचरण
किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न, भेदभाव या उत्पीड़न कठोर अपराध है।
11. Rule 23 – Vindication of Acts and Character
यदि कोई सेवक मानहानि के आरोपों से खुद को मुक्त करना चाहता है (official duties से जुड़े मामलों में), तो उसे पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी।
उल्लंघन के परिणाम
यदि कोई सरकारी सेवक इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) हो सकती है –
चेतावनी (Warning)
वेतन कटौती (Reduction in pay)
पदावनति (Demotion)
निलंबन (Suspension)
बर्खास्तगी (Dismissal from service)
सारांश
सिविल सेवा आचरण नियम, 1964 (लागू 1965 से) सरकारी सेवकों के लिए एक आचार संहिता है।
इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि सरकारी कर्मचारी –
ईमानदार, निष्पक्ष और निष्ठावान बने रहें,
भ्रष्टाचार, राजनीति, अनुचित संपत्ति अर्जन और अनुशासनहीनता से दूर रहें,
और उनकी कार्यप्रणाली से सरकार की विश्वसनीयता बनी रहे।
0 Comments